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सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार

 सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार (jurisdiction of Supreme Court) सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार निम्न प्रकार से है- 1. प्रारंभिक या मूल क्षेत्राधिकार  प्रारंभिक या मूल क्षेत्राधिकार का वर्णन संविधान के अनुच्छेद-131 में किया गया है। इसके अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय निम्न प्रकार के मामलों की सुनवाई करता है। दो या दो से अधिक राज्यों के बीच के विवाद की सुनवाई करता है । भारत सरकार तथा एक या एक से अधिक संघ राज्यों के बीच विवाद । एक तरफ भारत सरकार और एक या एक से अधिक राज्यों तथा दूसरी तरफ एक या एक से अधिक अन्य राज्यों के बीच विवाद। इसके अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय उस विवाद को निर्णय के लिए स्वीकार करेगी, जिसमें किसी तथ्य या विधि का प्रश्न शामिल हो। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से सम्बंधित भी सर्वोच्च न्यायालय के प्रारंभिक क्षेत्राधिकारके अंतर्गत आते है। संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत नागरिकों के मौलिक अधिकारों की अवहेलना होने पर सर्वोच्च न्यायालय में याचिका देने का अधिकार दिया गया है। इसलिए नागरिकों के मौलिक अधिकार से संबंधित अभियोग भी सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिक...

भारतीय नागरिकों के मौलिक कर्तव्य

भारतीय नागरिकों के मौलिक (मूल) कर्तव्य  भारत के मूल संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का वर्णन तो था। लेकिन मौलिक (मूल) कर्तव्यों का उल्लेख नहीं था। स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर संविधान के 42वें संविधान संशोधन में इसे जोड़ा गया। इस अधिनियम में एक नया भाग-4 जोड़ा गया। इस नये भाग में अनुच्छेद 51 (क) को जोड़ा गया, जिसके अंतर्गत भारतीय नागरिकों के मौलिक कर्तव्य का उल्लेख किया गया है। इस तरह से मौलिक कर्तव्य 42वें संविधान संशोधन अधिनियम की मुख्य विशेषता है । इसके अलावा वर्ष 2002 में 86वें संविधान संशोधन अधिनियम के अंतर्गत एक और मौलिक कर्तव्य को जोड़ा गया है । स्वर्ण सिह समिति की सिफारिशों के आधार पर दस मौलिक कर्तव्य जोड़े गये है- संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों,  सिद्धांतों,  संस्थाओं,  राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय गान के प्रति आदर भाव रखना । स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जिन आदर्शों को अपनाया गया था और जिनसे प्रेरणा मिली थी, उनपर चलना। भारत की सार्वभौमिकता, एकता, अखंडता में विश्वास करना और उसकी रक्षा करना। देश की सुरक्षा के लिए आवश्यकता के समय में राष्ट्रीय सेवा के ...

राज्यसभा के संगठन और अधिकार

राज्यसभा के संगठन, अधिकार और कार्य (The composition and power of Council of States) भारतीय संसद में दो सदनों होते है उपरी सदन और निचली  सदन। राज्यसभा भारतीय संसद का उच्च सदन होता है। राज्यसभा का संगठन  राज्यसभा में सदस्यों की संख्या अधिकतम 250 निश्चित की गई है। जिसमें 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामित किये जाते है। ये सदस्य वैसे होते है जो साहित्य, कला, विज्ञान, समाज सेवा क्षेत्र में विशेष ज्ञान रखते हैं। ये नामित सदस्य कहे जाते है। अभी वर्तमान में राज्यसभा में 245 सदस्य है।  राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन राज्यों के विधानसभा में  निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति से होता है। राज्यसभा की निर्वाचन में इस बात का ख्याल रखा गया है कि प्रत्येक राज्य का प्रतिनिधित्व इसको प्राप्त हो। इसके लिये सीटों का आवंटन प्रत्येक राज्य की जनसंख्या के आधार पर किया गया है न कि राज्यों की समानता सिद्धार्थ के आधार पर जैसे आप देख सकते है उत्तर प्रदेश में प्रदेश से सदस्यों की संख्या सर्वाधिक है वही कुछ राज्यों जैसे मणिपुर,मेघालय, मिजोरम, नागालैण्ड, सिक्किम, त्रिपुरा, गोवा,...

भारत में चुनाव सुधार

 भारत में चुनाव सुधार (Electoral reforms in India) चुनाव संशोधन (जनप्रतिनिधि) अधिनियम 1996  इस संशोधन के तहत चुनाव कानून में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए । जिनमें से कुछ निम्न प्रकार से है- राष्ट्रीय सम्मान का अपमान करने पर चुनाव लड़ने पर पाबंदी  राष्ट्रीय सम्मान के अपमान की रोक-थाम सम्बन्धी अधिनियम 1971 के अंतर्गत अपराधी पाए जाने पर उस व्यक्ति के चुनाव लड़ने पर की पाबंदी लगा दी जाएगी। यानि भारत के राष्ट्रीय ध्वज या संविधान का अपमान करने का अपराधी पाए जाने पर या फिर राष्ट्र गान के गायन में बाधा पहुँचाने का अपराध करने पर उस व्यक्ति के चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी जाएगी। जिस दिन से वह अपराधी घोषित किया गया, उस तिथि से छह वर्ष तक के लिए व्यक्ति संसद चुनाव या विधानसभा चुनाव लड़ने के अयोग्य समझा जायेगा । प्रस्तावक की संख्या में वृद्धि  संशोधित कानून के तहत यह व्यवस्था की गई है कि जो उम्मीदवार किसी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय दल का नही है वह संसद या विधानसभा में नामजदगी के लिए नामांकन तभी दाखिल कर सकता है जब उसके नाम का प्रस्ताव उस निर्वाचन क्षेत्र के कम से क...

प्रधानमंत्री के अधिकार और कार्य

प्रधानमंत्री के अधिकार और कार्य  (The power and functions of Prime Minister) प्रधानमंत्री की नियुक्ति और कार्यकाल  प्रधानमंत्री की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 75(1) के अंतर्गत राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। राष्ट्रपति उस व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त करता है जो लोकसभा में बहुमत दल का नेता होता है। प्रधानमंत्री अपने पद पर तबतक बना रहता है जबतक लोकसभा में उसका बहुमत है। यदि लोकसभा में उसका बहुमत समाप्त हो जाता है तो ऐसी स्थिति में उसे त्यागपत्र देना पड़ेगा अन्यथा राष्ट्रपति द्वारा उसे बर्खास्त किया जा सकता है।  प्रधानमंत्री बनने के लिए यह अनिवार्य नही है कि वह लोकसभा का सदस्य हो। प्रधानमंत्री पद पर ऐसे व्यक्ति को भी नियुक्त किया जा सकता है जो किसी भी संसद सदन का सदस्य नहीं है। लेकिन छह माह के भीतर ही उसे लोकसभा का सदस्य बनना जरूरी होता है। प्रधानमंत्री को 5 वर्षों के लिए नियुक्त किया जाता है । लेकिन वह अपने  पद पर तबतक बना रहता जब तक उसे लोकसभा में बहुमत प्राप्त होता है।  प्रधानमंत्री के कार्य और अधिकार  प्रधानमंत्री देश के शासन व्यवस्था का सर्वोच्...

उच्च न्यायालय के संगठन और क्षेत्राधिकार

उच्च न्यायालय के संगठन और क्षेत्राधिकार ( The composition and jurisdiction of High Courth) भारत में उच्च न्यायालय विभिन्न राज्यों की अलग-अलग  न्यायपालिका है। यहां भी संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह संघीय न्यायालय और अलग-अलग राज्यों के लिए अलग न्यायपालिका की व्यवस्था है। अमेरिका में संघीय सिद्धांत के अनुसार संघ तथा अलग इकाईयों के लिए दोहरी न्यायपालिका की व्यवस्था है । इस मामले में भारत अमेरिका से अलग है, हमारे देश में एकहरा सिद्धांत को अपनाया गया है । भारतीय  संघ में उच्च न्यायालयों को सर्वोच्च न्यायालय की देख-रेख में रखा गया है। भारत में उच्च न्यायालय का भारतीय संघ में विशेष महत्त्व है ।  बिहार का उच्च न्यायालय पटना में है, इसकी स्थापना 1916 ई. में की गई थी।  भारत में उच्च न्यायालय की स्थापना का प्रावधान भारतीय संविधान की अनुच्छेद-214, अध्याय-5 के भाग-6 में है, जिसके अनुसार  'प्रत्येक राज्य का एक उच्च न्यायालय होगा । दो या दो से अधिक राज्योंके लिए एक ही न्यायालय हो सकता है।' भारत के सभी अलग-अलग राज्यों के न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीश रहते है। अ...

मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्व में अंतर

मौलिक अधिकार और नीति-निर्देशक तत्व में अंतर  मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्व दोनों का वर्णन संविधान में किया गया है। मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्व दोनों अधिकार से संबंधित है। लेकिन दोनों में अलग-अलग प्रकार के अधिकार का उल्लेख किया गया है। आज हम इस लेख में मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्व के बीच के अंतर को स्पष्ट करेंगे।  मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्वों में मुख्य अंतर इस प्रकार से हैं  मौलिक अधिकार का उल्लेख संविधान के भाग-3 के अनुच्छेद 12 से 35 में मिलता है और नीति- निर्देशक तत्व का उल्लेख भाग-4 के अनुच्छेद 36 से 51 में किया गया है। मौलिक अधिकार को संयुक्त राष्ट्र अमेरिका से लिया गया है वही नीति निर्देशक तत्व को आयरलैंड के संविधान से लिया गया है। मौलिक अधिकार को लागू करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति अदालत में जा सकता है वही नीति निर्देशक तत्वों को लागू करने के लिए अदालत जाने की आवश्यकता नहीं होती है। मौलिक अधिकार में कानूनी मान्यता होती है। जबकि नीति निर्देशक तत्व में सरकारी मान्यता होती है। मौलिक अधिकार नागरिकों को स्वतः ही मिल जाती है वही नीति निर्देशक तत्वो...

Maulik adhikar

Contents[hide] भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार का वर्णन संविधान के भाग-3 के अनुच्छेद 12 से 35 में किया गया हैं। मौलिक अधिकार को अमेरिका के संविधान से लिया गया है। भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों की संख्या शुरुआत में सात 7 थी। 44वें संविधान संशोधन (1978) के अंतर्गत संपत्ति के अधिकार (अनुच्छेद-31और 19क) को हटा दिया गया। अभी वर्तमान में भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों की संख्या 6 हैं। भारतीय संविधान में वर्णित छह मौलिक अधिकार  1. समता या समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18) 2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22) 3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24) 4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28) 5. संस्कृति और शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30) 6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32) 1.समता या समानता का अधिकार  (अनुच्छेद 14 से 18) इसमें समता या समानता के अधिकार का उल्लेख किया गया है। अनुच्छेद -14 इसके अंतर्गत यह अधिकार दिया गया है कि राज्य सभी व्यक्तियों के लिए एकसमान कानून बनायेगा। अनुच्छेद -1...