सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

राज्यसभा के संगठन और अधिकार

राज्यसभा के संगठन, अधिकार और कार्य (The composition and power of Council of States)

भारतीय संसद में दो सदनों होते है उपरी सदन और निचली  सदन। राज्यसभा भारतीय संसद का उच्च सदन होता है।

राज्यसभा का संगठन 

राज्यसभा में सदस्यों की संख्या अधिकतम 250 निश्चित की गई है। जिसमें 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामित किये जाते है। ये सदस्य वैसे होते है जो साहित्य, कला, विज्ञान, समाज सेवा क्षेत्र में विशेष ज्ञान रखते हैं। ये नामित सदस्य कहे जाते है। अभी वर्तमान में राज्यसभा में 245 सदस्य है। 

राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन राज्यों के विधानसभा में  निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति से होता है। राज्यसभा की निर्वाचन में इस बात का ख्याल रखा गया है कि प्रत्येक राज्य का प्रतिनिधित्व इसको प्राप्त हो। इसके लिये सीटों का आवंटन प्रत्येक राज्य की जनसंख्या के आधार पर किया गया है न कि राज्यों की समानता सिद्धार्थ के आधार पर जैसे आप देख सकते है उत्तर प्रदेश में प्रदेश से सदस्यों की संख्या सर्वाधिक है वही कुछ राज्यों जैसे मणिपुर,मेघालय, मिजोरम, नागालैण्ड, सिक्किम, त्रिपुरा, गोवा, अरूणाचल प्रदेश से मात्र एक प्रतिनिधि सदस्य भेजे जा सकते है। 

राज्यसभा का अध्यक्षता उपराष्ट्रपति करते है। यानि भारत के उपराष्ट्रपति राज्यसभा के अध्यक्ष या सभापति होते है। सभापति की अनुपस्थिति में राज्यसभा की अध्यक्षता उप-सभापति करते है। जो राज्यसभाके सदस्यों द्वारा ही चयनित होते है। यदि उप-सभापति भी अनुपस्थित रहता है तो सभा की अध्यक्षता राज्यसभा का वह सदस्य करता है जो राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जायेगा।

राज्यसभा के सदस्यों के लिए योग्यताएँ

  • वह भारत का नागरिक हो
  • उसकी आयु कम से कम 30 वर्ष की होनी चाहिए।
  • ऐसी योग्यता रखता हो जिसे संसद-विधि द्वारा निर्धारित किया गया हो।
  • राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए अयोग्य नहीं हो।

अयोग्यताएँ

  • वह भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अंतर्गत किसी लाभ पद नहीं हो। लेकिन मंत्री और संसद द्वारा निर्धारित कोई अन्य पद जिसे मुक्त किया गया हो इसके अंतर्गत नही आता हो।
  • किसी सक्षम न्यायालय द्वारा पागल करार नहीं किया गया हो।
  • दिवालिया नही हो।
  • भारत की नागरिकता छोड़ दी हो और किसी विदेशी राज्य की नागरिकता ग्रहण कर ली हो।

संसद द्वारा घोषित अयोग्यताएँ

  • वह निर्वाचन से सम्बंधित किसी अपराध का दोषी नहीं हो।
  • वह किसी सरकारी नौकरी से भ्रष्टाचार के आधार पर नहीं निकाला गया हो।
  • वह सरकार से सम्बंधित किसी कारखाने या अनुबंध का हिस्सेदार नहीं हो।

कार्यकाल

राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल छह वर्ष का होता है। जिसमें से एक-तिहाई सदस्य प्रत्येक दो वर्ष में सेवा निवृत्त हो जाते है। 

राज्यसभा के अधिकार और कार्य 

विधायी अधिकार 

संविधान में राज्यसभा को भी लोकसभा की तरह ही विधि-निर्माण संबंधी कार्य करने का अधिकार दिया गया है। वित्त विधेयक को छोड़कर अन्य विधेयकों के मामले में दोनों सदनों को बराबर अधिकार है। यानि वित्त विधेयक को छोड़कर अन्य विधेयको को दोनों सदनों में से किसी भी सदन में पहले प्रस्तावित किया जा सकता है। दोनों सदनों से पारित होने के बाद ही विधेयक राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए जाता है।

संविधान के अनुच्छेद- 108 के अनुसार किसी साधारण विधेयक पर दोनों सदनों में मतभेद होने की स्थिति में, राष्ट्रपति द्वारा दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई जाती है। जिसमें बहुमत के आधार पर विधेयक पारित होने का निर्णय लिया जाता है। ऐसे मतभेद की स्थिति कई बार उत्पन्न हुई जैसे 1961 में दहेज निरोध विधेयक,  1978 में बैंकिंग सेवा आयोग विधेयक,  2002 ईस्वी में आतंकवाद निरोध विधेयक इस स्थिति में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई गई।


वित्तीय अधिकार

वित्तीय क्षेत्र में सारे महत्वपूर्ण अधिकार लोकसभा को ही प्राप्त है राज्यसभा को कुछ ही अधिकार प्रदान किये गये है ।  संविधान के अनुसार वित्त विधेयक (धन विधेयक) लोकसभा में ही पारित होंगे। वित्त-विधेयक लोकसभा से प्रस्तावित होने के बाद राज्यसभा में सिफारिश के लिए भेजा जाएगा। राज्यसभा उस विधेयक पर चौदह दिन के भीतर अपनी सिफारिश दे सकता है लेकिन यह लोकसभा के हाथ में है कि वह यह सिफारिश मानें या नहीं मानें। विधेयक पर अपनी सिफारिश देने के बाद उसे लोकसभा को वापस लौटा दिया जाता है। यहां उसपर फिर से विचार-विमर्श किये जाते हैं और साधारण बहुमत के द्वारा पारित कर राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है।

चौदह दिन के भीतर विधेयक नही लौटाने पर विधेयक को उसी रूप में पारित कर दिया जाता है जिस रूप में वह लोकसभा द्वारा पारित किया गया था।


कार्यपालिका पर नियंत्रण अधिकार 

संसद शासन व्यवस्था में मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होता है। यानि मंत्रिपरिषद राज्यसभा के प्रति उत्तरदायी नहीं होता है। राज्यसभा के सदस्य मंत्रियों से प्रश्न और पूरक प्रश्न पूछ सकते है और आलोचना भी कर सकते है। लेकिन अविश्वास प्रस्ताव को पारित कर मंत्रियों को हटाने का उन्हें  अधिकार नहीं है, यह अधिकार केवल लोकसभा को प्रदान की गई है।

संविधान संशोधन-सम्बंधी अधिकार

संविधान संशोधन के सम्बन्ध में दोनों सदनों सदनों को समान अधिकार प्राप्त है। यानि संविधान में जो अधिकार लोकसभा को प्राप्त है वही अधिकार राज्यसभा को भी दिये गये हैं। संविधान संशोधन संबंधित विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तावित किये जा सकते है। संशोधन संबंधित यह प्रस्ताव तभी स्वीकृत समझे जाते है जब उस विधेयक को दोनों सदनों में अलग-अलग कुल बहुमत से यानि दोनों सदनों में अलग-अलग उपस्थित और मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से पारित कर दिया जाता है। संविधान संशोधन प्रस्ताव पर दोनों सदनों में से किसी की असहमति पर संविधान संशोधन का प्रस्ताव गिर जाता है। इसमें संयुक्त बैठक बुलाने की आवश्यकता नहीं पड़ता है।

निर्वाचन मंडल के रूप में कार्य

राज्यसभा निर्वाचन मंडल के रूप में भी कार्य करती है। वह लोकसभा और राज्य विधानसभा के साथ मिलकर राष्ट्रपति का निर्वाचन करते है और उस पर महाभियोग भी लगा सकते है। इसी प्रकार लोकसभा के साथ मिलकर उपराष्ट्रपति का निर्वाचन भी करते है। 

 विविध कार्य 

  • राज्यसभा और लोकसभा मिलकर राष्ट्रपति पर महाभियोग लगा सकते है।
  • राज्यसभा और लोकसभा मिलकर सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के विरूद्ध महाभियोग का प्रस्ताव पास कर सकती है।
  • अनुच्छेद- 352 के अंतर्गत आपातकाल की घोषणा और अनुच्छेद- 356 के अंतर्गत राज्यों के संवैधानिक तंत्र के विफल होने पर उद्घोषणा का अनुमोदन करने के मामले में लोकसभा के समान अधिकार प्राप्त है। 
  • केवल राज्यसभा को यह अधिकार प्राप्त है कि राज्यसभा में उपस्थित और मतदान देने वाले सदस्यों के कम से कम  दो तिहाई सदस्यों के बहुमत से अखिल भारतीय सेवाओं का सृजन कर सके।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्व में अंतर

मौलिक अधिकार और नीति-निर्देशक तत्व में अंतर  मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्व दोनों का वर्णन संविधान में किया गया है। मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्व दोनों अधिकार से संबंधित है। लेकिन दोनों में अलग-अलग प्रकार के अधिकार का उल्लेख किया गया है। आज हम इस लेख में मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्व के बीच के अंतर को स्पष्ट करेंगे।  मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्वों में मुख्य अंतर इस प्रकार से हैं  मौलिक अधिकार का उल्लेख संविधान के भाग-3 के अनुच्छेद 12 से 35 में मिलता है और नीति- निर्देशक तत्व का उल्लेख भाग-4 के अनुच्छेद 36 से 51 में किया गया है। मौलिक अधिकार को संयुक्त राष्ट्र अमेरिका से लिया गया है वही नीति निर्देशक तत्व को आयरलैंड के संविधान से लिया गया है। मौलिक अधिकार को लागू करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति अदालत में जा सकता है वही नीति निर्देशक तत्वों को लागू करने के लिए अदालत जाने की आवश्यकता नहीं होती है। मौलिक अधिकार में कानूनी मान्यता होती है। जबकि नीति निर्देशक तत्व में सरकारी मान्यता होती है। मौलिक अधिकार नागरिकों को स्वतः ही मिल जाती है वही नीति निर्देशक तत्वो...

भारत की राष्ट्रभाषा क्या है

 भारत की राष्ट्रभाषा क्या है अक्सर हमारे सामने यह प्रश्न आता है कि भारत की राष्ट्रभाषा क्या है? बहुत सारे लोग इस प्रश्न का उत्तर हिन्दी देते है। जबकि यह उत्तर सही नहीं हैं। जी हाँ, भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी नही है। तो आइये जानते हैं भारत की राष्ट्रभाषा क्या है? भारत की राष्ट्रभाषा क्या है? भारत की अभी कोई भी भाषा राष्ट्रभाषा नही हैं। हां भारत की राजभाषा हिन्दी जरूर है लेकिन संविधान के अनुसार हिन्दी को राष्ट्रभाषा नहीं माना हैं। भारत के संविधान के अनुसार हिंदी राजभाषा है। हिंदी अपने अहिन्दी प्रान्तों में और अन्य प्रांतों में भी धीरे-धीरे व्यवहार में आती जा रही है। राजस्थान, महाराष्ट्र गुजरात, कर्नाटक आदि जगहों पर वहां की स्थानीय भाषा के साथ-साथ हिन्दी का भी प्रयोग हो रहा है। इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि हिन्दी राष्ट्रभाषा का पद की ओर अग्रसर है।   राष्ट्रभाषा का अर्थ  राष्ट्रभाषा का तात्पर्य ऐसी भाषा से है, जो पूरे राष्ट्र या देश में प्रयोग की जाती है या फिर अन्य भाषा के साथ उस भाषा का प्रयोग होता है, साथ ही उसका प्रयोग सार्वजनिक आदि कामों में भी होता है।  और प...

समास और समास के भेद

समास और समास के भेद  समास किसे कहते हैं? जब दो या दो से अधिक शब्द अपने विभक्ति (करक चिन्हों) को छोड़ कर आपस में मिलकर एक शब्द बना लेते हैं तो यह समास कहे जाते है।  उदाहरण  विद्यालय = विद्या का आलय (घर) गंगातट = गंगा का तट रसोईघर = रसोई के लिए घर आदि । समास के भेद  समास के सात भेद है जो इस प्रकार से है तत्पुरूष समास अव्ययीभाव समास  कर्मधारय समास बहुब्रीहि समास द्वन्द्व समास द्विगु समास नञ् समास तत्पुरूष समास  इस समास में  समासिक शब्द का अंतिम पद प्रधान होता है। पहला पद संज्ञा या विशेषण होता हैं। उदाहरण  गगनचुम्बी  - गगन को चूमनेवाला  राजकन्या  - राजा की कन्या  हथकड़ी  - हाथ के लिए कड़ी   रोगमुक्त  - रोग से मुक्त  देशभक्ति  - देश भक्ति  अव्ययीभाव समास  इस समास में सामासिक शब्द का पहला पद प्रधान होता है।  उदाहरण  यथासंभव  - जितना संभव हो  यथार्थ  - अर्थ के अनुसार  हरघड़ी  - प्रत्येक घड़ी प्रतिदिन  - प्रत्येक दिन आजीवन  - जीवन भर के लिए  इत्याद...