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राष्ट्रभाषा क्या है

 राष्ट्रभाषा क्या है? हम अक्सर राष्ट्रभाषा, राज्यभाषा और राजभाषा के बारे में सुनते है, और confusion में पड़ जाते है कि ये तीनों एक है या अलग-अलग है, तो आज हम राष्ट्रभाषा के बारे में जानकारी देंगे कि राष्ट्रभाषा क्या है? तो आइये जानते हैं  राष्ट्रभाषा क्या हैं  जब कोई भाषा उन्नत और महत्वपूर्ण बन जाती हैं। पूरे राष्ट्र में अन्य भाषा क्षेत्र के साथ-साथ उसका प्रयोग सार्वजनिक आदि कामों में भी होता है, तो वह राष्ट्रभाषा कही जाने लगती हैं।  उदाहरण के लिए हम अग्रेंजी भाषा को ही लेते है यह व्यापार आदि क्षेत्रों में विश्व के लगभग सभी देशो में बोली जाती है जिस कारण यह अंतरराष्ट्रीय भाषा या विश्व भाषा है। इस प्रकार से राष्ट्रभाषा को हम निम्नलिखित बिन्दुओं में अंकित कर सकते है  राष्ट्रभाषा पूरे राष्ट्र में बोली जाने वाली  और सम्मानित भाषा हैं। राष्ट्रभाषा की मान्यता सार्वजनिक होती है।  इस भाषा की संरचना कार्यालयी नही होती है।  इस भाषा में  अलग-अलग भाषाओं के शब्द भी सहज रूप से शामिल होते रहते है आदि।

राज्यपाल की स्थिति औरअधिकार

राज्यपाल की स्थिति और अधिकार (Position and function of Governor) राज्यपाल की स्थिति  राज्यपाल राज्य का प्रथम व्यक्ति होता है। वह राज्य का संवैधानिक अध्यक्ष होता है। लेकिन वास्तविक शक्तियां मुख्यमंत्री के पास होती है। राज्य की सभी कार्यकारी शक्तियां राज्यपाल के पास होती है और सारे कार्य उनके नाम पर ही होते है। राज्यपाल सभी कार्यकारी कार्य के लिए सिर्फ अपनी सहमति देते है। वह राज्य के मंत्रिपरिषद की सलाह मानने को बाध्य होता है।  राज्यपाल केन्द्र सरकार द्वारा नामित होता है जिसे राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है। वह केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के बीच एक कड़ी का काम करता है। राज्यपाल के अधिकार  राज्यपाल के अधिकारों को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट कर सकते है  कार्यपालिका संबंधी अधिकार  राज्य की कार्यपालिका का प्रमुख राज्यपाल होता है, और कार्यपालिका की शक्तियाँ राज्यपाल में भी निहित होती है। जिनको वह स्वयं या अधीनस्थ अधिकारियों द्वारा सम्पादित करते है। यानि वास्तविक शक्तियां मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिपरिषद में निहित होती है। वह राज्य के विधानसभा में बहुमत...

मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्व में अंतर

मौलिक अधिकार और नीति-निर्देशक तत्व में अंतर  मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्व दोनों का वर्णन संविधान में किया गया है। मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्व दोनों अधिकार से संबंधित है। लेकिन दोनों में अलग-अलग प्रकार के अधिकार का उल्लेख किया गया है। आज हम इस लेख में मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्व के बीच के अंतर को स्पष्ट करेंगे।  मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्वों में मुख्य अंतर इस प्रकार से हैं  मौलिक अधिकार का उल्लेख संविधान के भाग-3 के अनुच्छेद 12 से 35 में मिलता है और नीति- निर्देशक तत्व का उल्लेख भाग-4 के अनुच्छेद 36 से 51 में किया गया है। मौलिक अधिकार को संयुक्त राष्ट्र अमेरिका से लिया गया है वही नीति निर्देशक तत्व को आयरलैंड के संविधान से लिया गया है। मौलिक अधिकार को लागू करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति अदालत में जा सकता है वही नीति निर्देशक तत्वों को लागू करने के लिए अदालत जाने की आवश्यकता नहीं होती है। मौलिक अधिकार में कानूनी मान्यता होती है। जबकि नीति निर्देशक तत्व में सरकारी मान्यता होती है। मौलिक अधिकार नागरिकों को स्वतः ही मिल जाती है वही नीति निर्देशक तत्वो...

Maulik adhikar

Contents[hide] भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार का वर्णन संविधान के भाग-3 के अनुच्छेद 12 से 35 में किया गया हैं। मौलिक अधिकार को अमेरिका के संविधान से लिया गया है। भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों की संख्या शुरुआत में सात 7 थी। 44वें संविधान संशोधन (1978) के अंतर्गत संपत्ति के अधिकार (अनुच्छेद-31और 19क) को हटा दिया गया। अभी वर्तमान में भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों की संख्या 6 हैं। भारतीय संविधान में वर्णित छह मौलिक अधिकार  1. समता या समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18) 2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22) 3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24) 4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28) 5. संस्कृति और शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30) 6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32) 1.समता या समानता का अधिकार  (अनुच्छेद 14 से 18) इसमें समता या समानता के अधिकार का उल्लेख किया गया है। अनुच्छेद -14 इसके अंतर्गत यह अधिकार दिया गया है कि राज्य सभी व्यक्तियों के लिए एकसमान कानून बनायेगा। अनुच्छेद -1...