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उच्च न्यायालय के संगठन और क्षेत्राधिकार

उच्च न्यायालय के संगठन और क्षेत्राधिकार ( The composition and jurisdiction of High Courth)

भारत में उच्च न्यायालय विभिन्न राज्यों की अलग-अलग  न्यायपालिका है। यहां भी संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह संघीय न्यायालय और अलग-अलग राज्यों के लिए अलग न्यायपालिका की व्यवस्था है। अमेरिका में संघीय सिद्धांत के अनुसार संघ तथा अलग इकाईयों के लिए दोहरी न्यायपालिका की व्यवस्था है । इस मामले में भारत अमेरिका से अलग है, हमारे देश में एकहरा सिद्धांत को अपनाया गया है । भारतीय  संघ में उच्च न्यायालयों को सर्वोच्च न्यायालय की देख-रेख में रखा गया है। भारत में उच्च न्यायालय का भारतीय संघ में विशेष महत्त्व है । 

बिहार का उच्च न्यायालय पटना में है, इसकी स्थापना 1916 ई. में की गई थी।  भारत में उच्च न्यायालय की स्थापना का प्रावधान भारतीय संविधान की अनुच्छेद-214, अध्याय-5 के भाग-6 में है, जिसके अनुसार  'प्रत्येक राज्य का एक उच्च न्यायालय होगा । दो या दो से अधिक राज्योंके लिए एक ही न्यायालय हो सकता है।'

भारत के सभी अलग-अलग राज्यों के न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीश रहते है। अन्य न्यायाधीशों की संख्या संविधान में निश्चित नहीं है और जिसे भारत के राष्ट्रपति आवश्यकता के अनुसार घटा-बढा सकते है। संविधान के 7वें संशोधन के अनुसार राष्ट्रपति किसी उच्च न्यायालय में कार्य के बढ़ जाने के कारण अतिरिक्त न्यायाधीशों की नियुक्ति अधिक से अधिक दो वर्षों के कर सकती है। यह अन्य न्यायाधीशों के लिए निर्धारित है मुख्य न्यायाधीश के लिए नहीं । 

उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति 

भारत के संविधान के अनुसार सभी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा होती है। मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और संबंधित राज्य (जिस राज्य के उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति होगी उस राज्य के राज्यपाल) के राज्यपाल से परामर्श करके करते हैं । और अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से सलाह लेकर करते है । राष्ट्रपति कार्यवाहक न्यायाधीश की नियुक्ति तब करते है जब कोई स्थाई न्यायाधीश अस्थायी रूप से अनुपस्थित है। कोई भी न्यायाधीश यानि कार्यवाहक या अतिरिक्त न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु तक अपने पद बने रह सकते है, पहले यह सीमा 60 वर्ष थी।

उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के लिए योग्यता 

उच्च न्यायालय के न्यायाधीशके लिए निम्नलिखित योग्यता निर्धारित की गई है 
  1. भारत का नागरिक हो।
  2. वह भारत राज्य क्षेत्र के अंतर्गत किसी किसी न्याय पद रह चुके हो।
  3. राज्य के उच्च न्यायालयों में वह कम से कम 10 वर्षों तक अधिवक्ता रह चुका हो।
  4. उसकी आयु 62 वर्ष से कम हो।
44वें संविधान संशोधनके अंतर्गत अब न्यायाधीश के बनने के लिए यह आवश्यक किया गया है कि उम्मीदवार न्यायिक अधिकारी रह चुका हो या एक से अधिक न्यायालयों में 10 वर्ष तक वकालत कर चुका हो।

शपथ और कार्य अवधि 

उच्च न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश पद-ग्रहण से पहले  राज्यपाल के समक्ष ईमानदारी, निष्पक्षता और बिना भय के न्यायाधीश करना की शपथ लेता है।

मूल संविधान में उच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीश अपने पद पर 60 वर्ष की आयु तक रह सकता था। बाद में 15वें संशोधन के द्वारा उनके कार्यकाल को 62 वर्ष कर दिया गया । अब उच्च न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश अपने पद पर 62 वर्ष की आयुतक बने रहेंगे ।

स्थानांतरण 

सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श लेकर राष्ट्रपति अनुच्छेद-222 के अंतर्गत उच्च न्यायालय के किसी  न्यायाधीश का स्थानांतरण किसी दूसरे उच्च न्यायालय में कर सकता है ।

वेतन और भत्ते 

संविधान की दूसरी अनुसूची और अनुच्छेद- 221 के अंतर्गत उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को वेतन-भत्ते मिलते है। इन्हें वेतन आदि राज्य की संचित निधि से मिलते है। मूल संविधान में मुख्य न्यायाधीश को चार हजार प्रतिमाह और अन्य न्यायाधीशों को तीन हजार प्रतिमाह मिलता था । जो अब तक बढ कर दो लाख के आस-पास हो गई है । मार्च 1976 ई. में एक विशेषाधिकार पारित किया गया जिसमें संसद द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को परिवार पेंशन और ग्रेच्युटि की सुविधा दी गई। 

उच्च न्यायालय के कार्यक्षेत्र 


प्रारंभिक क्षेत्राधिकार 

संविधान लागू होने के बाद भारत के सभी उच्च न्यायालय को प्रारंभिक क्षेत्राधिकार प्राप्त है। संविधान लागू होने के पहले यह अधिकार सिर्फ कलकत्ता,  बम्बई और मद्रास उच्च न्यायालय को ही प्राप्त था। भारत के अन्य न्यायालयों को केवल अपीलीय अधिकार थे।

अपीलीय क्षेत्राधिकार 

उच्च न्यायालय को दिवानी और फौजदारी दोनों प्रकार के अधिकार प्राप्त है । 

दीवानी मामले

दीवानी मामलों में कोई भी अपील या तो पहली होगी या दूसरी होगी। इस अधिकार के अंतर्गत उच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालयों के निर्णय के विरुद्ध प्रस्तुत की गई अपीलें सुनता है। यानि जब कोई निम्न स्तर से न्यायालय के विरुद्ध किसी अपील पर निर्णय देता है तो उस न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध उच्च न्यायालय में मामले के सम्बन्ध में दूसरी अपील की जा सकती है । लेकिन इस प्रकार की अपील  में केवल  कानून या प्रक्रिया के आधार पर प्रश्न किये जाते हैं, किसी तथ्य के प्रश्न पर नहीं।

पटना उच्च न्यायालय में प्रारंभ और अपीली क्षेत्राधिकार के अंतर्गत किसी भी एक न्यायाधीश द्वारा लिए गए निर्णय के विरुद्ध न्यायालय में पुनः अपील की जा सकती है । 

फौजदारी मामले 

फौजदारी अपीलीय क्षेत्राधिकार के अंतर्गत उच्च न्यायालयों में दिये गये न्यायिक निर्णयों के विरुद्ध निम्नलिखित कारणों से अपील की जा सकती है ।
  1. उच्च न्यायालय के प्रारंभिक फौजदारी अधिकार के अंतर्गत लिया गया निर्णय ।
  2. किसी स्तरीय न्यायाधीश या अतिरिक्त स्तरीय न्यायाधीश द्वारा लिये गये निर्णय 
  3. किसी प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट द्वारा लिये गये निर्णय, 
  4. भारतीय दंड संहिता की धारा 124(a) के अंतर्गत किसी जिला मजिस्ट्रेट का निर्णय ।

अधिक्षण का अधिकार 

उच्च न्यायालय को अधीक्षण का अधिकार प्राप्त है। इस अधिकार के अंतर्गत उच्च न्यायालय किसी अधीनस्थ न्यायालय से उसके कार्यों का विवरण माँग सकता है, उसे रिकार्ड, लेखों, पुस्तकों आदि को रखने के संबंध में आदेश दे सकता है । किसी मुकदमे को एक न्यायालय से दूसरे न्यायालय में स्थानांतरण कर सकता है ।

लेख जारी करने का अधिकार 

संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत उच्च न्यायालय के मौलिक अधिकारों को लागू करने का अधिकार दिया गया है । इसके अलावा अन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लेखा ,आदेश और निर्देश जारी करने का अधिकार दिया गया है।

प्रशासकीय न्यायाधिकरण से सम्बंधित

उच्च न्यायालय के पदाधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति और सेवा शर्तों को मुख्य न्यायाधीश द्वारा निर्धारित की जाती है। इसके लिये वह राज्यपाल और लोक सेवा आयोग से परामर्श लेता है। उच्च न्यायालय के अधीन जो भी न्यायालय है उस न्यायालय के शेरिफ, क्लर्क, वकील और अन्य कर्मचारियों आदि की फीस निश्चित करने का कार्य करता है । ऐसा करने के लिये वह राज्य से स्वीकृति लेता है ।

आधुनिक समय में राज्यों के कार्यो में बढोतरी हुई है  जिस कारण देशभर में अनेक प्रशासकीय न्यायाधिकरण की स्थापना की गई । इन प्रशासकीय न्यायाधिकरण को नियंत्रित करने के लिए उच्च न्यायालय को अधिकार दिये गये हैं।

प्रादेशिक क्षेत्राधिकार 

भारत में किसी भी उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार सिर्फ उस राज्य के क्षेत्र तक ही फैला रहता है जिस राज्य का वह उच्च न्यायालय है। संसद द्वारा उच्च न्यायालय का कार्य क्षेत्र दो या दो से अधिक राज्यों में और संघीय भू-भाग में भी फैला सकती है। जैसे 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत कलकत्ता उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को अण्डमान निकोबार द्वीप समूह तक फैलाया गया ।

अभिलेख न्यायालय 

सर्वोच्च न्यायालय की तरह ही उच्च न्यायालय भी एक अभिलेख न्यायालय है। इसके अभिलेखों को प्रमाण के रूप में पेश किया जाता है और उन्हें किसी न्यायालय में पेश किए जाने पर उनकी वैधानिकता पर सन्देह नहीं किया जा सकता है ।

निम्न न्यायालय के विचाराधीन मुकदमों को अपने अधीन में लेने का अधिकार 

उच्च न्यायालय को यह अधिकार है कि अगर निम्न न्यायालय के विचाराधीन मुकदमे जो संविधान की व्याख्या से सम्बंधित प्रश्न है, उस मुकदमे को अपने अधीन मँगा सकता है और उस मुकदमा का फैसला स्वयं भी कर सकता है। 

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