सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार (jurisdiction of Supreme Court)
सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार निम्न प्रकार से है-
1. प्रारंभिक या मूल क्षेत्राधिकार
प्रारंभिक या मूल क्षेत्राधिकार का वर्णन संविधान के अनुच्छेद-131 में किया गया है। इसके अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय निम्न प्रकार के मामलों की सुनवाई करता है।
- दो या दो से अधिक राज्यों के बीच के विवाद की सुनवाई करता है ।
- भारत सरकार तथा एक या एक से अधिक संघ राज्यों के बीच विवाद ।
- एक तरफ भारत सरकार और एक या एक से अधिक राज्यों तथा दूसरी तरफ एक या एक से अधिक अन्य राज्यों के बीच विवाद।
इसके अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय उस विवाद को निर्णय के लिए स्वीकार करेगी, जिसमें किसी तथ्य या विधि का प्रश्न शामिल हो।
- राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से सम्बंधित भी सर्वोच्च न्यायालय के प्रारंभिक क्षेत्राधिकारके अंतर्गत आते है।
- संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत नागरिकों के मौलिक अधिकारों की अवहेलना होने पर सर्वोच्च न्यायालय में याचिका देने का अधिकार दिया गया है। इसलिए नागरिकों के मौलिक अधिकार से संबंधित अभियोग भी सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आते है।
2. अपीलीय क्षेत्राधिकार
सर्वोच्च न्यायालय अपील का उच्चतम न्यायालय है। सर्वोच्च न्यायालय को उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार है । संविधान के अनुच्छेद-132, 133, 134 और 136 में अपीलीय क्षेत्राधिकार का स्पष्ट वर्णन मिलता है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित अधिकार का वर्णन किया गया है
संवैधानिक मामलों में
संवैधानिक मामलों में उच्च न्यायालय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। यह अपील ऐसी स्थिति में की जा सकती है, जब संविधान के व्याख्यान से संबंधित विधि के किसी प्रश्न पर उच्च न्यायालय ने अलग-अलग निर्णय दिये हो और उच्चतम न्यायालय ने अपना निर्णय नही दिया हो।
इसका विवरण संविधान के अनुच्छेद- 132 में मिलता है।
दीवानी मामलों में
संविधान के अनुच्छेद-133 के अनुसार दीवानी मामलों में भी सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार है कि वह उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध अपील को स्वीकार करें। इस प्रकार की अपील उस स्थिति में की जा सकती है जब उच्च न्यायालय द्वारा यह प्रमाणित किया हो कि उक्त मामलों में विधि या सार्वजनिक महत्व के संदर्भ में कोई कानूनी प्रश्न शामिल है। और उस मामलें का निर्णय सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा कराया जाना आवश्यक है।
फौजदारी मामलों में
संविधान के अनुच्छेद-134 अंतर्गत आपराधिक और फौजदारी मामलों में उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। ऐसा तब किया जा सकता है जब निम्नलिखित कारण हो-
- किसी अपराधी को उसके अधीनस्थ न्यायालय ने छोड़ दिया हो और अपीलीय उच्च न्यायालय ने उसे मृत्यु दंड दिया हो।
- किसी मामलें को उच्च न्यायालय ने उसके अधीनस्थ न्यायालय से हटाकर अपने पास transfer करवा लिया हो और दोषी को मृत्युदंड दिया गया हो।
- उच्च न्यायालय ने यह साबित किया हो कि उक्त मामलों की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा होनी चाहिए।
विशेष अनुमति अपील
संविधान के अनुच्छेद-136 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार है कि वह किसी न्यायालय या उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए किसी निर्णय, परिणाम, आदेश, दंड इत्यादि के विरूद्ध विशेष अपील करने की अनुमति अपनी स्वेच्छा से दे सकता है। सर्वोच्च न्यायालय को सैन्य न्यायालयों के विरुद्ध यह अधिकार प्राप्त नहीं होता है।
3. परामर्श संबंधी क्षेत्राधिकार
सर्वोच्च न्यायालय राष्ट्रपति को परामर्श भी देता है।
- ऐसा तब होता है जब राष्ट्रपति को यह लगता है कि विधि या उक्त तथ्य से संबंधित कोई प्रश्न उठा है या उठने वाला होता है जो सार्वजनिक महत्व का होता है या उस प्रश्न की प्रकृति इस प्रकार की होती है कि उस पर सर्वोच्च न्यायालय का परामर्श लेना उचित माना जाता है। तब राष्ट्रपति उक्त प्रश्न को सर्वोच्च न्यायालय के पास परामर्श हेतु भेजते है।
- सर्वोच्च न्यायालय उसकी कार्यवाही करके उस पर अपना परामर्श राष्ट्रपति को भेज देता है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए परामर्श राष्ट्रपति के लिए बाध्य नहीं है यानि राष्ट्रपति उस परामर्श को मान भी सकता है और नही भी मान सकता है।
- अनुच्छेद-143 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार है कि यदि उससे पूछा गया प्रश्न आवश्यक नही है व्यर्थ है तो वह उत्तर देने से इन्कार कर सकता है।
4. पूनर्विचार संबंधि क्षेत्राधिकार
- संविधान के अनुच्छेद-137 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय को अपने निर्णय पर पुनर्विचार का अधिकार है और उसे सुधारने का भी अधिकार है।
- सर्वोच्च न्यायालय को यदि यह लगता है कि दिये गये निर्णय में किसी पक्ष के प्रति न्याय नहीं हुआ है तब इस स्थिति में वह पुनर्विचार कर सकता है।
5. संविधान की व्याख्या और संरक्षण
- संविधान के अनुच्छेद-131,132 और 133 के अंतर्गत ही सर्वोच्च न्यायालय को संविधान की व्याख्या करने का पूर्ण और अंतिम अधिकार है।
- यदि कोई कानून संविधान का उल्लंघन करता है तो उसे अवैध घोषित कर सकता है।
- संसद या राज्य विधानमंडल के द्वारा पारित किसी भी कानून को संविधान के प्रावधानों के अनुसार होना चाहिए यदि ऐसा नहीं होता है तो सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार है कि वह उस कानून पर अंकुश लगा सकता है।
6. स्थानान्तरण का क्षेत्राधिकार
- सर्वोच्च न्यायालय को अधिकार है कि वह उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों को मँगवा सकता है और उसका निवारण कर सकता है।
- उसे यह अधिकार भी है कि उन मामलों को एक उच्च न्यायालय से दूसरे न्यायालय में स्थानांतरित कर सकता है।
7. अभिलेख न्यायालय
सर्वोच्च न्यायालय को संविधान के अनुच्छेद-129 के अंतर्गत अभिलेख न्यायालय माना गया है। इसकी सभी कार्यवाही, निर्णय आदि प्रमाण के रूप में प्रकाशित किये जाते है। देश के सभी न्यायालय इसे उदाहरण के रूप में स्वीकार करने के लिए बाध्य है। जब न्यायालय को अभिलेख का दर्जा मिल जाता है तो उसे यह अधिकार मिल जाता है कि वह न्यायालय का अपमान करने वाले को दंड दे सके।
8. मौलिक अधिकारों की रक्षक
सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों की रक्षक है। उन्हें मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए लेख, निर्देश और आदेश जारी करने का अधिकार है। अनुच्छेद-32 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय का विशेष उत्तरदायित्व है कि वह मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिए आवश्यक कार्यवाही करें।
अन्य शक्तियां
- राष्ट्रपति द्वारा संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों को पदच्युत करने से पहले सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उन्हें जाँचना और प्रमाणित करना आवश्यक होता है। बिना प्रमाणित किये उन्हें पदच्युत नहीं किया जा सकता है।
- संविधान के अनुसार देश के सभी न्यायालयों, पंचायतों आदि का न्यायिक अधीक्षण करने का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को प्राप्त है।
- राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन के संबंध में किसी प्रकार का विवाद होने पर उसका निवारण करने का अधिकार सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय को है।
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