यात्रा वृतांत
यात्रा वृतांत क्या है?
मानव प्रकृति और सौंदर्य के प्रति हमेशा आकर्षित रहा है घुमक्कड़ भी रहा है वह जब कही जाता है तो वह कुछ न कुछ अवश्य ही ग्रहण करता हैं। जब सौंदर्य बोध की दृष्टि से उल्लास भावना से प्रेरित होकर कोई यात्रा करता हैं, और फिर उसका मुक्त भाव से अभिव्यक्ति करता है, उसे ही यात्रा साहित्य या यात्रा वृतांत कहते हैं । दूसरे रूप में हम कह सकते हैं किसी स्थान में बाहर से आये व्यक्ति के द्वारा उस स्थान के बारे में अनुभवों के लिखें को यात्रा वृतांत कहते हैं। इस यात्रा वृतांत में व्यक्ति परखता, स्वच्छंदतावाद, आत्मीयता आदि गुण पाये जाते हैं। यात्रा वृतांत अलग-अलग शैली में लिखा जाता है जो अलग-अलग रूपों में होता है।
इस साहित्य विद्या का उद्देश्य है
लेखक के अनुभवों को हु-ब-हु प्रेषित करना जिससे पाठक उस अनुभव को महसूस कर सके और वहां के सौन्दर्य को जान सके, व पाठकों को देश काल के बारे में जानकारी मिल सके।
यात्रा वृतांत साहित्य का आरंभ
मनुष्य आदि काल से ही यात्रा करता आ रहा हैं लेकिन यात्रा साहित्य का आरंभ आधुनिक युग को माना जाता है।
आदिकाल
यात्राओं का आदिकाल में भी महत्व था। लेखक एक दूसरे देश में घुमा करते थे। वे अपने अनुभव को घूम-घूम कर बताया करते और शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया करते थे। इसके अलावा अमुक देश की संस्कृति को जानते और समझते थे, अपने अनुभवों को लिखते थे। फाह्यान, ह्वेनसांग इत्यादि ने भी अपने यात्रा को लिखा है लेकिन इसे ज्ञान का भंडार की श्रेणी में रख सकते है लेकिन यात्रा वृतांत की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है।
आदिकाल के मुख्य यात्री- ह्वेनसांग, फाह्यान, अलबरूनी, इब्नबतूता, मार्कोपोलो, सेल्यूकस निकेटर आदि।
आधुनिक काल
आधुनिक काल में हिन्दी में यात्रा-वृतांत लिखने की परम्परा का सूत्रपात भारतेन्दु युग से माना जाता है। उनके द्वारा प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं में यात्रा का अधिकार महत्व होता था। भारतेन्दु जी ने खड़ी बोली का विकास किया, जो जन-जन की बोली थी। जिस कारण साहित्य की पहुंच एक आम व्यक्ति तक हो गई। भारतेन्दु युग के बाद द्विवेदी युग में भी यात्रा वृतांत लिखे गए।
इसी प्रकार से कई लेखको द्वारा यात्रा वृतांत लिखे गए। जिनमें श्रीधर पाठक, स्वामी सत्यानंद परिव्राजक राहुल सांस्कृत्यायन इत्यादि लेखक हैं। राहुल सांस्कृत्यायन को यात्रा साहित्य में अद्वितीय और अग्रणी माना जाता है। इन्होंने भारत के साथ-साथ भारत के आस-पास के अन्य देशों में भी भ्रमण किया हैं। वे दुर्गम घाटी, दर्रा, पहाड़ी, पठार आदि जगहों पर भी यात्रा करने से नहीं कतराते थे, उनकी यात्रा कई बार जानलेवा भी रही।
आगे चलकर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' ने अपनी विदेशी यात्रा को यात्री के रोमांचकाता के रूप में प्रस्तुत किया हैं। उनकी "एक बूँद सहसा उछली " यात्रा वृतांत में यूरोप और अमेरिका की यात्राओं का वर्णन किया गया है।
कुछ मुख्य रचनाएँ और उनके लेखक
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
सरयू पार की यात्रा(1871), हरिद्वार की यात्रा, लखनऊ की यात्रा(1871-79) इत्यादि।
राहुल सांस्कृत्यायन
मेरी लद्दाख यात्रा(1916), किन्नर देश में(1940), तिब्बत में सवाल वर्ष(1939), रूस में पच्चीस मास(1944-47), मेरी यूरोप यात्रा(1932)
दामोदर दास शास्त्री
मेरी पूर्व दिग्यात्रा(1885), दक्षिण दिग्यात्रा (1886)
देवी प्रसाद खत्री
रामेश्वर यात्रा(1893), बद्रिकाश्रय यात्रा (1902)
शिव प्रसाद गुप्त
पृथ्वी प्रदक्षिणां(1924)
स्वामी सत्यदेव
मेरी कैलाश यात्रा (1915), मेरी जर्मन यात्रा (1926)
कन्हैयालाल मिश्र
हमारी जापान यात्रा (1931)
राम नारायण मिश्र
यूरोप यात्रा के छह मास(1932)
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'
अरे यायावर रहेगा याद(1953), एक बूँद सहसा उछली (1964)
रामवृक्ष बेनीपुरी
पैरो में पंख बांधकर(1952), उड़ते चलो उड़ते चलो (1954)।
यशपाल
लोहे की दीवार (1953)
भगवतशरण उपाध्याय
कोलकाता से पिकिंग तक (1954), सागर की लहरों पर (1959)।
प्रभाकर माचवे
गोरी नजरों में हम(1964)।
मोहन राकेश
आखिरी चट्टान तक(1953)
निर्मल वर्मा
चीड़ों पर चांदनी (1964)
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